एक बार एक ब्राह्मण था। वो बहुत ज्ञानी भी था। उसको सभी शास्त्र कंठस्थ याद थे। लेकिन वो सत्य की खोज करना चाहता था। और वो ये भी जानता था की ये सब बिना गुरु के नही हो सकता। वो एक महात्मा के पास जाता है। और कहता है की मैं आप का शिष्य बनाना चाहता हूँ। लेकिन महात्मा उसको कहते है की तुम्हारे अंदर जितना ज्ञान है। तुम सारा लिख कर ले आओ। ताकि मैं तुम्हे वही सीखो जो तुम्हे नही आता।
शिष्य बहुत लंम्बे समय तक लिखता रहता है। और हजारो पेज लिख कर गुरु के सामने ले आता है। गुरु जी कहते है की ये बहुत ही ज्यादा है। इसको पढ़ने में तो मेरी उम्र ही समाप्त हो जाएगी। और शिष्य को गुरु जी कहते है की अच्छा होगा की तुम इसे संक्षिप्त में लिखकर ले आओ। फिर शिष्य दोबारा आधे पेज काम कर देता है।
लेकिन गुरु जी फिर भी यही कह देते है की ये भी ज्यादा है तुम इसे और काम कर के ले आओ।
और अबकी बार शिष्य अपना सारा ज्ञान बहुत काम पेज पर उतार कर ले आता है। लेकिन गुरु जी सोचते है की मेरी उम्र समाप्त होने को है तो तुम ऐसे और छोटा कर के ले आओ। अबकी बार शिष्य केवल एक पेज लेकर आता है। लेकिन गुरु जी भी आखरी समय में थे वो उसे भी ज्यादा बता देते है।
और अब शिष्य समझ चूका था की गुरु जी क्या चाहते है। और एक खाली लेकर शिष्य गुरु के पास जाता है।
और गुरु जी कहते है की अगर आप किसी से ज्ञान लेना कहते हो तो ज्ञानी बनकर नहीं अज्ञानी बनकर जाओ । तो ही आप ज्ञान ले सकते है।
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