ब्रांड मैनेजमेंट में चुनौतियों। (Challenges in brand management.)



आज के समय को देखते हुए यह कहना शायद गलत नही होगा की ब्रांड मैनजमेंट में चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही है की ब्रांड के सन्देश को ताजा तथा प्रासंगिक बनाए रखते हुए एकसंगत ब्रांड का निर्माण करे। पुराने ब्रांड की पहचान परिष्कृत बाजारों के साथ जोड़ने से गड़बड़ी हो सकती है। इसके लिए उसे दोबारा विजन स्टेटमेंट तथा निशान स्टेटमेंट आरंभ करने की आवश्यकता होती है। इससे जनसांखियकीय  विकास से उनके लक्षित बाजार में ब्रांड पहचान गुम हो सकती है। इसके लिए ब्रांड को दोबारा स्थापित करने की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया को रिब्रांडिंग कहा जाता है।

क्या करता है ऐसी स्थिति में ब्रांड मैनेजर

ब्रांड मैनेजर का सबसे पहला काम अपने उत्पाद को इस तरह से निर्मित करना है की वह उपभोक्ता के बीच आसानी से लोकप्रिय हो जाए।  कभी - कभी ब्रांड मैजनेजर अपना कार्य सीमित कर वितीय और बाजार के निष्पादन लक्ष्यों पर ज्यादा ध्यान देते है। अधिकांश ब्रांड मैनेजर अल्पकालीन लक्ष्य निर्धारित करते है, क्योकि उनका सपनसेशन पैकेज आपातकालीन व्यवहार के लिए ही उपयुक्त होता है। आपताकालीन लक्ष्यों को दीर्घकालीन लक्ष्यों की दिशा में मील के पत्थर के रूप माना जाना चाहिए। किसी ऐसी कंपनी में जो अलग अलग Type के Products पर काम करती है, वहां कुछ ब्रांडो का दूसरे ब्रांडो से टकराव होने लगता है। इसके लिए कॉरर्पोरेट लक्ष्य काफी व्यापक होना चाहिए ताकि टकराव की सभावना को टाला जा सके।  


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