दोस्तों ये बात मैं आप को एक कहानी के माध्यम से बताना चाहता हूँ।
एक बार की बात है की महान संत सुकरात अपने शिष्यों के साथ सभा बैठे थे। तभी वह पर एक और संत आए और बोले की मैं आप का चेहरा देख कर आप के चरित्र के बारे में बता सकता हूँ। और बोलो आप सभी में से कौन मेरे ज्ञान की परीक्षा लेना चाहता है। ये सुन कर संत सुकरात बोलते है की आप आपने के बारे हमे बताए।
संत सुकरात देखने में एक समान्य इंसान दिखाई देते थे। और उनका रूप भी बहुत अच्छा नहीं था।संत सुकरात की बात सुन कर वहां पर आया हुआ वो संत बोलता है की आप का चेहरा साफ - साफ बता रहा है की आप स्भाव से बहुत ही क्रोधी है। और आप का माथा बता रहा है की आप बहुत घमंडी साधु है।
ये सब सुन कर संत सुकरात के शिष्य बहुत ही क्रोधित ही जाते है। और उन को चुप रहने के लिए कहते है। लेकिन संत सुकरात अपने शिष्यों को चुप रहने के लिए कहते है। और उस साधु से कहते है की आप मेरे बारे में कुछ और बताए।
तभी वो साधु फिर से स्टार्ट हो जाते है की आप का ये कुरूप शरीर बता रहा है की आप बहुत ही लालची और सनकी किस्म के साधु है।
इतना सुनते ही संत सुकरात के शिष्यों से रहा नहीं गया और उन को जल्दी से जल्दी वहां से जाने को कहते है। तभी वहां से वो साधु चले जाते है।
लेकिन संत सुकरात के शिष्य अभी आष्चर्य में थे की गुरु जी ने उनको यह से बिना सजा के कैसे जाने दिया। तभी एक शिष्य संत सुकरात से पूछ ही लेता है की गुरु जी आप ने उन को यहाँ से बिना सजा के क्यों को जाने दिया।
संत सुकरात कहते है की आप इस घटना से कुछ सीखना चाहिए कयोकि उस व्यक्ति ने ऐसी कोई भी बात नहीं कही जो मेरा अंदर नहीं है। बुरा तो हर कोई होता है लेकिन बहुत से लोगो की बुराई को उनकी अच्छाई अपने निचे दबा लेती है और उस को लोग अच्छा समझने लगते है। लेकिन उस ने मेरे अंदर की केबल बुराईयों को देखा है। इस में उसका कोई दोष नहीं है।
संत सुकरात जी कहते है की मेरे कहने का तातपर्य ये है की आप सबसे पहले तो अपने अंदर की अच्छाई को बुराइयों से कही ज़्यदा कर ले। और सामने वाले व्यक्ति की अच्छाइयों को देखो न की बुराइयों को।
आप का जीवन सफल जो जाएगा।
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